नजर नहीं है नजारों की बात करते हैं

नजर नहीं है नजारों की बात करते हैं

नज़र नहीं है नज़ारों की बात करते हैं
ज़मीं पे चाँद-सितारों की बात करते हैं

वो हाथ जोड़कर बस्ती को लूटने वाले
भरी सभा में सुधारों की बात करते हैं

बड़ा हसीन है उनकी जबान का जादू
लगा के आग बहारों की बात करते हैं

मिली कमान तो अटकी नज़र ख़जाने पर
नदी सुखा के किनारों की बात करते हैं

वही गरीब बनाते हैं आम लोगों को
वही नसीब के मारों की बात करते हैं

वतन का क्या है, इसे टूटने-बिखरने दो
वो बुतकदों की, मज़ारों की बात करते हैं

-वीरेन्द्र वत्स

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