मै इस मुल्क का क्या लगता हूं?

मै इस मुल्क का क्या लगता हूं?

मै इस मुल्क का क्या लगता हूं?
ये जानने को मै कौन सी किताब पढू इतना बतादो,
मै अभी भूखा हूं,
सूटकेस पे सोते सोते घर जाते हुए,
मेरे सपने में मै गा रहा था,
वन्दे मातरम गुनगुना रहा था,
स्कूल के आंगन से अंदर जा रहा था,
पर नहीं
मै ईस्कुल नहीं जाना चाहता,
मै नहीं जानना चाहता ये भूमि का इतिहास,
मुझे नहीं लिखना “सोने की चिड़ियां” पे कोई भी निबंध,
मुझे राष्ट्र के मुकुट पे कविता लिखना कठिन लग रहा है,
और ना ही वो सब वेग प्रवेग और गति के समीकरणों से मुझे पन्ने भरने है,
मुझे फर्क नहीं पड़ता कौन सी भाषा कितनी पुरानी है या कौन सी भाषा सब भाषा की मां है,
वो हर भाषा जों मुझे “मै इस मुल्क का क्या लगता हूं?” ना बता पाए, उस हर भाषा से मुझे अलगाव है,
मै नहीं सीखना चाहता ज़्यादा कुछ,
मुझे इस्कुल भेज दिया,
मुझे सीखा दिया की ये देश मेरी मां लगता है,
वो मै सीख चुका हूं,
अब मुझे ये बताओ
“मै इस मुल्क का क्या लगता हूं?”
-zarana

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