Browsed by
Category: हिंदी

सोचो

सोचो

समंदर सारे शराब होते तो सोचो
कितने फसाद होते,
हकीक़त सारे ख्वाब होते  तो सोचो
कितने फसाद होते

किसी के दिल में क्या छुपा  है बस
ये खुदा ही जानता है ,
दिल अगर बे नक़ाब होते तो सोचो
कितने फसाद होते

थी ख़ामोशी फितरत हमारी तभी
तो बरसों निभा गए
अगर हमारे मुंह में भी जवाब होते
तो सोचो कितने फसाद होते

हम अच्छे थे पर लोगों की नज़र मे रहे बुरे
कहीं हम सच में खराब होते तो
सोचो कितने फसाद होते…

सरकारी सेवकों के लिए

सरकारी सेवकों के लिए

आप किसी भी सरकारी सेवा में हैँ…?
तो..आपके लिए कुछ ख़ास टिप्स…!!!

1. आप कुछ नहीं करेंगे.. तो आप को कोई कुछ नहीं कहेगा..!!

2. आप अगर सक्रिय हैँ.. तो हमेशा आप पर उँगलियाँ उठेगी..!!

3. अगर आप ये नहीं सोचेंगे.. कि श्रेय किसको मिलेगा.. तो आप बहुत कुछ कर सकते हैँ..!!

4. आपके जितने विरोधी होंगे.. आपका उतना बड़ा कद होगा..!!

5. आप जितना ज्यादा काम करेंगे.. उतना ज्यादा और काम करना पड़ेगा..!!

6. जिम्मेदारी उसी की तरफ खिंची आती हैं.. जो उन्हें उठाना चाहता है..!!

7. आप जो भी प्रोजेक्ट करेंगे.. उसकी सफलता का श्रेय संस्था को मिलेगा.. और असफलता की जवाबदेही आपकी होगी..!!

8. जो आपका सबसे अच्छा हितैषी है.. वो आपके मुँह पर आपकी आलोचना करेगा.!!

9. आप को प्रशंसा तब मिलेगी.. जब आप उसकी अपेक्षा करना बंद कर देंगे..!!

10. आप लोकप्रिय तब होंगे.. जब अपने साथियों के कार्यों को सराहेंगे.. और उनका उत्साह बढ़ाएंगे..!!

11. आप कब सही थे.. कोई याद नहीं रखेगा, आप कब गलत थे.. कोई नहीं भूलेगा..!!

12. आप जितना नियम मान कर चलेंगे.. आप पर उतना ज्यादा नियम मानने का दबाव बनाया जायेगा..!!

सबसे ख़ास बात.. सरकारी कार्य का उद्देश्य, पैसे कमाना नही, अपितु,
मन की संतुष्टि होता है.. और इस के लिए बहुत कुछ सहना होता है.. और आत्मसंतुष्टि से बढ़कर कुछ नहीं है…!!!

सभी सरकारी नौकरों को समर्पित..

जीवन का मूल्य

जीवन का मूल्य

एक आदमी ने गुरुनानक साहब से पुछा : गुरूजी, जीवन का मूल्य क्या है?

गुरूनानक ने उसे एक Stone दिया और कहा :
जा और इस stone का मूल्य पता करके आ , लेकिन ध्यान  रखना stone को बेचना नही है I

वह आदमी stone को बाजार मे एक संतरे वाले के पास लेकर गया और बोला: इसकी कीमत क्या है?

संतरे वाला चमकीले stone को देखकर बोला, “12 संतरे लेजा और इसे मुझे दे जा”

आगे एक सब्जी वाले ने उस चमकीले stone को देखा और कहा  “एक बोरी आलू ले जा और इस stone को मेरे पास छोड़ जा”

आगे एक सोना बेचने वाले के पास गया उसे stone दिखाया सुनार उस चमकीले stone को देखकर बोला,  “50 लाख मे बेच दे” l

उसने मना कर दिया तो सुनार बोला “2 करोड़ मे दे दे या बता इसकी कीमत जो माँगेगा वह दूँगा तुझे..

उस आदमी ने सुनार से कहा मेरे गुरूने इसे बेचने से मना किया है l

आगे हीरे बेचने वाले एक जौहरी के पास गया उसे stone दिखाया l

जौहरी ने जब उस बेसकीमती रुबी को देखा , तो पहले उसने रुबी के पास एक लाल कपडा बिछाया फिर उस बेसकीमती रुबी की परिक्रमा लगाई माथा टेका l

फिर जौहरी बोला , “कहा से लाया है ये बेसकीमती रुबी? सारी कायनात , सारी दुनिया को बेचकर भी इसकी कीमत नही लगाई जा सकती ये तो बेसकीमती है l”

वह आदमी हैरान परेशान होकर सीधे गुरू के पास आया l

अपनी आप बिती बताई और बोला
“अब बताओ गुरूजी, मानवीय जीवन का मूल्य क्या है?

गुरूनानक बोले :

संतरे वाले को दिखाया उसने इसकी कीमत “12 संतरे” की बताई l

सब्जी वाले के पास गया उसने इसकी कीमत “1 बोरी आलू” बताई l

आगे सुनार ने “2 करोड़” बताई l और जौहरी ने इसे “बेसकीमती” बताया l

अब ऐसा ही मानवीय मूल्य का भी है l

तू बेशक हीरा है..!! लेकिन,
सामने वाला तेरी कीमत,
अपनी औकात – अपनी जानकारी –  अपनी हैसियत से लगाएगा।

घबराओ मत दुनिया में..
तुझे पहचानने वाले भी मिल जायेगे। हर ऐक आदमी अपने आप मे एक हीरा है। अपने आप को पहचाने।

पित्झा

पित्झा

पत्नी ने कहा – आज धोने के लिए ज्यादा कपड़े मत निकालना…

पति- क्यों??

उसने कहा..- अपनी काम वाली बाई दो दिन नहीं आएगी…

पति- क्यों??

पत्नी- गणपति के लिए अपने नाती से मिलने बेटी के यहाँ जा रही है, बोली थी…

पति- ठीक है, अधिक कपड़े नहीं निकालता…

पत्नी- और हाँ!!! गणपति के लिए पाँच सौ रूपए दे दूँ उसे? त्यौहार का बोनस..

पति- क्यों? अभी दिवाली आ ही रही है, तब दे देंगे…

पत्नी- अरे नहीं बाबा!! गरीब है बेचारी, बेटी-नाती के यहाँ जा रही है, तो उसे भी अच्छा लगेगा… और इस महँगाई के दौर में उसकी पगार से त्यौहार कैसे मनाएगी बेचारी!!

पति- तुम भी ना… जरूरत से ज्यादा ही भावुक हो जाती हो…

पत्नी- अरे नहीं… चिंता मत करो… मैं आज का पिज्जा खाने का कार्यक्रम रद्द कर देती हूँ… खामख्वाहपाँच सौ रूपए उड़ जाएँगे, बासी पाव के उन आठ टुकड़ों के पीछे…

पति- वा, वा… क्या कहने!! हमारे मुँह से पिज्जा छीनकर बाई की थाली में??

तीन दिन बाद… पोंछा लगाती हुई कामवाली बाई से पति ने पूछा…

पति- क्या बाई?, कैसी रही छुट्टी?

बाई- बहुत बढ़िया हुई साहब… दीदी ने पाँच सौ रूपए दिए थे ना.. त्यौहार का बोनस..

पति- तो जा आई बेटी के यहाँ…मिल ली अपने नाती से…?

बाई- हाँ साब… मजा आया, दो दिन में 500 रूपए खर्च कर दिए…

पति- अच्छा!! मतलब क्या किया 500 रूपए का??

बाई- नाती के लिए 150 रूपए का शर्ट, 40 रूपए की , बेटी को 50 रूपए के पेढे लिए, 50 रूपए के पेढे मंदिर में प्रसाद चढ़ाया, 60 रूपए किराए के लग गए.. 25 रूपए की चूड़ियाँ बेटी के लिए और जमाई के लिए 50 रूपए का बेल्ट लिया अच्छा सा… बचे हुए 75 रूपए नाती को दे दिए कॉपी-पेन्सिल खरीदने के लिए… झाड़ू-पोंछा करते हुए पूरा हिसाब उसकी ज़बान पर रटा हुआ था…

पति- 500 रूपए में इतना कुछ???

वह आश्चर्य से मन ही मन विचार करने लगा…उसकी आँखों के सामने आठ टुकड़े किया हुआ बड़ा सा पिज्ज़ा घूमने लगा, एक-एक टुकड़ा उसके दिमाग में हथौड़ा मारने लगा… अपने एक पिज्जा के खर्च की तुलना वह कामवाली बाई के त्यौहारी खर्च से करने लगा… पहला टुकड़ा बच्चे की ड्रेस का, दूसरा टुकड़ा पेढे का, तीसरा टुकड़ा मंदिर का प्रसाद, चौथा किराए का, पाँचवाँ गुड़िया का, छठवां टुकड़ा चूडियों का, सातवाँ जमाई के बेल्ट का और आठवाँ टुकड़ा बच्चे की कॉपी-पेन्सिल का..आज तक उसने हमेशा पिज्जा की एक ही बाजू देखी थी, कभी पलटाकर नहीं देखा था कि पिज्जा पीछे से कैसा दिखता है… लेकिन आज कामवाली बाई ने उसे पिज्जा की दूसरी बाजू दिखा दी थी… पिज्जा के आठ टुकड़े उसे जीवन का अर्थ समझा गए थे… “जीवन के लिए खर्च” या “खर्च के लिए
जीवन” का नवीन अर्थ एक झटके में उसे समझ आ गइ।

जिंदगी और नेकी

जिंदगी और नेकी

मैं “किसी से” बेहतर करुं
क्या फर्क पड़ता है..!
मै “किसी का” बेहतर करूं
बहुत फर्क पड़ता है..!!

एक काफिला सफ़र के दौरान अँधेरी सुरंग से गुजर रहा था । उनके पैरों में कंकरिया चुभी, कुछ लोगों ने इस ख्याल से कि किसी और को ना चुभ जाये, नेकी की खातिर उठाकर जेब में रख ली ।  कुछ ने ज्यादा उठाई कुछ ने कम । जब अँधेरी सुरंग से बाहर आये तो देखा वो हीरे थे। जिन्होंने कम उठाये वो पछताए कि ज्यादा क्यों नहीं उठाए । जिन्होंने नहीं उठाए वो और पछताए । दुनिया में जिन्दगी की मिसाल इस अँधेरी सुरंग जैसी है और नेकी यहाँ कंकरियों की मानिंद है । इस जिंदगी में जो नेकी की वो आखिर में हीरे की तरह कीमती होगी और इन्सान तरसेगा कि और ज्यादा क्यों ना की।

हिंदुस्तान खतरे में है

हिंदुस्तान खतरे में है

ना इस्लाम खतरे में है, ना हिन्दू खतरे में है
धरम और मजहब से बटता इंसान खतरे में है

ना राम खतरे में है, ना रहमान खतरे में है
सियासत की भेट चढ़ता भाईचारा खतरे में है

ना कुरआन खतरे में है , ना गीता खतरे में है
नफरत की दलीलों से इन किताबो का ज्ञान खतरे में है

ना मस्जिद खतरे में है , ना मंदिर खतरे में है
सत्ता के लालची हाथो,इन दीवारों की बुनियाद खतरे में है

ना ईद खतरे में है , ना दिवाली खतरे में है
गैर मुल्को की नजर लगी है , हमारा सदभाव खतरे में है

जरा गौर से देखो मेरे देश वासियों
अब तो हमारा “हिंदुस्तान” खतरे में है……

आहीस्ता चल जिंदगी

आहीस्ता चल जिंदगी

आहीस्ता चल जिंदगी,
अभी कईं कर्ज चुकाना बाकी है।
कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फर्ज निभाना बाकी है।

रफ्तार मे तेरे चलने से कुछ रूठ गये, कुछ छूट गये।
रूठों को मनाना, छुटे हुये को जुटाना अभी बाकी है।

कुछ हसरते, कुछ जरूरी काम अभी बाकी है।
ख्वाईशें जो दबी रही इस दिल में उनको दफनाना अभी बाकी है।

कुछ रिश्ते बन कर टूट गये, कुछ जुडते जुडते छुट गये,
उन टुटे और छुटे रिश्तों के जख्म मिटाना अभी बाकी है।

तू आगे चल मै आता हूं,
क्या छोड कर तुझे जी पाउंगा?
इन सांसो पर जिनका हक है उनको समझाना अभी बाकी है।

आहीस्ता चल जिंदगी,
अभी कईं कर्ज चुकाना बाकी है।

किस्मत – नियत

किस्मत – नियत

“बक्श देता है ‘खुदा’ उनको,
जिनकी ‘किस्मत’ ख़राब होती है…

वो हरगिज नहीं ‘बक्शे’ जाते है,
जिनकी नियत खराब होती है…”

न मेरा एक होगा, न तेरा लाख होगा,
न तारिफ तेरी होगी, न मजाक मेरा होगा.

गुरुर न कर “शाह-ए-शरीर” का………..
मेरा भी खाक होगा, तेरा भी खाक होगा !!!

कौनसी मुलाक़ात आख़री होगी

कौनसी मुलाक़ात आख़री होगी

कोई रो कर दिल बहलाता है और कोई हँस कर दर्द छुपाता है.

क्या करामात है कुदरत की, ज़िंदा इंसान पानी में डूब जाता है और मुर्दा तैर के दिखाता है…

मौत को देखा तो नहीं, पर शायद वो बहुत खूबसूरत होगी,
कम्बख़त जो भी उस से मिलता है, जीना छोड़ देता है..

ग़ज़ब की एकता देखी लोगों की ज़माने में ..
ज़िन्दों को गिराने में और मुर्दों को उठाने में ..

ज़िन्दगी में ना ज़ाने कौनसी बात “आख़री” होगी, ना ज़ाने कौनसी रात “आख़री” होगी ।

मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से,
ना जाने कौनसी “मुलाक़ात” आख़री होगी …

Masoom Bachpan

Masoom Bachpan

image

Chalo Phir Dhoond Lein Hum!
Usi Masoom Bachpan Ko!

Unhi Masoom Khushiyon Ko!
Unhi Rangeen Lamhon Ko!

Jaha Ghum Ka Pata Na Tha!
Jaha Dukh Ki Samajh Na Thi!

Jahan Bus Muskurahat Thi!
Baharein Hi Baharein Thi!

Chalo Phir Dhond Laein Hum!
Usi Masoom Bachpan Ko!

Ke Jab Sawan Barasta Tha!
To Us Kaghaz Ki Kashti Ko,

Bana’na Aur Duba Dena!
Boht Achchha Sa Lagta Tha!

Aur Is Duniya Ka Har Chehra!
Boht Sachcha Sa Lagta Tha ..