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Category: हिंदी

इंसान जाने कहाँ खो गये हैं

इंसान जाने कहाँ खो गये हैं

जाने क्यूँ,
अब शर्म से,
चेहरे गुलाब नहीं होते।

जाने क्यूँ,
अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते।

पहले बता दिया करते थे,
दिल की बातें।

जाने क्यूँ,
अब चेहरे,
खुली किताब नहीं होते।

सुना है,
बिन कहे,
दिल की बात,
समझ लेते थे।

गले लगते ही,
दोस्त हालात,
समझ लेते थे।

तब ना फेस बुक था,
ना स्मार्ट फ़ोन,
ना ट्विटर अकाउंट,
एक चिट्टी से ही,
दिलों के जज्बात,
समझ लेते थे।

सोचता हूँ,
हम कहाँ से कहाँ आगए,
व्यावहारिकता सोचते सोचते,
भावनाओं को खा गये।

अब भाई भाई से,
समस्या का समाधान,
कहाँ पूछता है,

अब बेटा बाप से,
उलझनों का निदान,
कहाँ पूछता है,

बेटी नहीं पूछती,
माँ से गृहस्थी के सलीके,

अब कौन गुरु के,
चरणों में बैठकर,
ज्ञान की परिभाषा सीखता है।

परियों की बातें,
अब किसे भाती है,
अपनों की याद,
अब किसे रुलाती है,

अब कौन,
गरीब को सखा बताता है,

अब कहाँ,
कृष्ण सुदामा को गले लगाता है

जिन्दगी में,
हम केवल व्यावहारिक हो गये हैं,
मशीन बन गए हैं हम सब,

इंसान जाने कहाँ खो गये हैं!
इंसान जाने कहां खो गये हैं….!

समझो कुछ गलत है

समझो कुछ गलत है

जब बचपन तुम्हारी गोद में आने से कतराने लगे

जब मां की कोख से झांकती जिंदगी बाहर आने से घबराने लगे

समझो कुछ गलत है

जब तलवारें फूलों पर जोर आजमाने लगे

जब मासूम आंखों में खौफ नजर आने लगे

समझो कुछ गलत है

जब ओस की बूंदों को हथेलियों पर नहीं हथियारों की नोंक पर ठहरना हो

जब नन्हें नन्हें तलवों को आग से गुजरना हो

समझो कुछ गलत है

जब किलकारियां सहम जाएं

जब तोतली बोलियां खामोश हो जाएं

समझो कुछ गलत है

कुछ नहीं बहुत कुछ गलत है

क्योंकि जोर से बारिश होनी चाहिए थी

पूरी दुनिया में

हर जगह टपकने चाहिए थे आंसू

रोना चाहिए था ऊपर वाले को

आसमान से

फूट फूटकर शर्म से झुकनी चाहिए थी इंसानी सभ्यता की गर्दनें

शोक नहीं सोच का वक़्त है

मातम नहीं सवालों का वक़्त है

अगर इसके बाद नहीं सर उठाकर खड़ा हो सकता है

इंसान तो समझो कुछ गलत है.

– प्रशुन जोशी

भगवान का दोस्त

भगवान का दोस्त

​एक बच्चा जला देने वाली गर्मी में नंगे पैर
गुलदस्ते बेच रहा था

लोग उसमे भी मोलभाव कर रहे थे।

एक सज्जन को उसके पैर देखकर बहुत दुःख हुआ, सज्जनने बाज़ार से नया जूता ख़रीदा और उसे देते हुए कहा

“बेटा लो, ये जूता पहन लो”

लड़के ने फ़ौरन जूते निकाले और पहन लिए

उसका चेहरा ख़ुशी से दमक उठा था.

वो उस सज्जन की तरफ़ पल्टा

और हाथ थाम कर पूछा, “आप भगवान हैं?

उसने घबरा कर हाथ छुड़ाया और कानों को हाथ लगा कर कहा,

“नहीं बेटा, नहीं, मैं भगवान नहीं”

लड़का फिर मुस्कराया और कहा,

“तो फिर ज़रूर भगवान के दोस्त होंगे,

क्योंकि मैंने कल रात भगवान से कहा था

कि मुझे नऐ जूते देदें”.

वो सज्जन मुस्कुरा दिया और उसके माथे को प्यार से चूमकर अपने घर की तरफ़ चल पड़ा.

अब वो सज्जन भी जान चुके थे कि भगवान का दोस्त होना कोई मुश्किल काम नहीं..

खुशियाँ बाटने से मिलती है, मंदिर में नहीं

चांद तुम एक कर्मचारी हो

चांद तुम एक कर्मचारी हो


दफ्तर है आसमान, चांद तुम एक कर्मचारी हो।

पंद्रह दिनों तक कंटते छटते घटते रह जाते हो।

बाद पंद्रह दिनों के कृष्ण पक्ष में खो जाते हो ।

नौकरी के पहले दिन जैसे पूनम हो जाते हो।

वेतन के दिन जैसे चांदनी बिखराते निकलते हो।

चांद तुम एक कर्मचारी हो…..

जानता हूँ

जानता हूँ

मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ,
आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।

लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधिया,
मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।

छोटे से बडा बनना आसाँ नहीं होता,
जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र जानता हूँ।

मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,
छालों में छिपी लकीरों का असर जानता हूँ।

बेवक़्त, बेवजह, बेहिसाब मुस्कुरा देता हूँ,
आधे दुश्मनो को तो यूँ ही हरा देता हूँ!

काफी कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,
क्योंकि एक दिन राख में मिलना है ये जानता हूँ।

माँ की इच्छा

माँ की इच्छा

mother-waiting

महीने बीत जाते हैं,
साल गुजर जाता है,
वृद्धाश्रम की सीढ़ियों पर
मैं तेरी राह देखती हूँ।

आँचल भीग जाता है ,
मन खाली खाली रहता है ,
तू कभी नहीं आता ,
तेरा मनि आर्डर आता है।

इस बार पैसे न भेज ,
तू खुद आ जा ,
बेटा मुझे अपने साथ ,
अपने घर लेकर जा।

तेरे पापा थे जब तक ,
समय ठीक रहा कटते ,
खुली आँखों से चले गए ,
तुझे याद करते करते।

अंत तक तुझको हर दिन ,
बढ़िया बेटा कहते थे ,
तेरे साहबपन का ,
गुमान बहुत वो करते थे।

मेरे ह्रदय में अपनी फोटो ,
आकर तू देख जा ,
बेटा मुझे अपने साथ ,
अपने घर लेकर जा।

अकाल के समय ,
जन्म तेरा हुआ था ,
तेरे दूध के लिए ,
हमने चाय पीना छोड़ा था।

वर्षों तक एक कपडे को ,
धो धो कर पहना हमने ,
पापा ने चिथड़े पहने ,
पर तुझे स्कूल भेजा हमने।

चाहे तो ये सारी बातें ,
आसानी से तू भूल जा ,
बेटा मुझे अपने साथ ,
अपने घर लेकर जा।

घर के बर्तन मैं माँजूंगी ,
झाडू पोछा मैं करूंगी ,
खाना दोनों वक्त का ,
सबके लिए बना दूँगी।

नाती नातिन की देखभाल ,
अच्छी तरह करूंगी मैं ,
घबरा मत, उनकी दादी हूँ ,
ऐंसा नहीं कहूँगी मैं।

तेरे घर की नौकरानी ,
ही समझ मुझे ले जा ,
बेटा मुझे अपने साथ ,
अपने घर लेकर जा

आँखें मेरी थक गईं ,
प्राण अधर में अटका है ,
तेरे बिना जीवन जीना ,
अब मुश्किल लगता है।

कैसे मैं तुझे भुला दूँ ,
तुझसे तो मैं माँ हुई ,
बता ऐ मेरे कुलभूषण ,
अनाथ मैं कैसे हुई ?

अब आ जा तू..
एक बार तो माँ कह जा ,
हो सके तो जाते जाते
वृद्धाश्रम गिराता जा।
बेटा मुझे अपने साथ
अपने घर लेकर जा

जमे रहेना, डटे रहेना

जमे रहेना, डटे रहेना

prayerhands

सही रास्ते पे चलने की एक कीमत यह भी होती है कि आपको अधिक यात्रा अकेले ही तय करना पड़ती है।

कभी ऐसा लगता है कि आप के चारों ओर के लोग तीरंदाज़ हैं और आप उन सब का निशाना बन गए हैं।

अपनों में छिपे बेगाने और बे गानों में छिपे अपनों की पहचान करनी होती है।

एक समूह हमेशा ऐसा होता है जो आपके पीछे चरित्र हनन करेगा और आपकी गलतीयों के प्रचार करेंगे लेकिन सामने आकर आपके प्रति आस्था व प्रेम व्यक्त करेगा।
आपके लिए यह विश्वास करना मुश्किल होगा कि इन दो चेहरों में से उसका असली चेहरा कौन सा है?

कुछ लोग ऐसे भी होंगे जो आपकी नाकामियों पर आप का मज़ाक उड़ाते हैं। और उपलब्धियों पर ईर्ष्या करते होंगे।

हर कोई अपने मनोबल को आजमाएगा, किसी को प्रतिष्ठा का भूखा समझेगा, कोई आपको रिया कार बताएगा, कोई घमंडी का खिताब देगा और कभी आप खुदसर भी कहा जा सकता है ..

बार बार दिल टूटेगा, बार बार अपने अहंकार को मुंह की खानी पड़ेगी। बार बार बेहैसियत लोगों के व्यंग्य भरे वाक्य सुनने होंगे। एकांत में पीड़ा और दुख की तीव्रता से आंसू भी निकल जाएंगे.

लेकिन मेरे प्यारे!
कभी खुद को बिखरने मत देना, अपने इरादों को कमजोर न होने देना। हवाएं कितनी भी ना अनुकूल हो, तुम टूटना नहीं, हटना नहीं टलना नहीं, जमे रहना, डटे रहना …

क्या तुम्हारे संतुष्टि के लिए यह पर्याप्त नहीं कि तुम्हारा रब तुम्हारे साथ है?
जब वह साथ है तो फिर किसी के साथ होने या न होने से क्या फर्क पड़ता है?
अपने रब से बातें करो, (यानी नमाज़ पढो)
जब दिल भर आए तो उसके सामने गिडगिडा कर रो भी लो, उससे अपने दुख दर्द का वर्णन करो, इससे भावनाओं हरारत, हौसलों की तपिश और प्रतिबद्धता और साहस पर डटे रहने की ताकत और हिंमत मांगा करो।

अब तुम पाओगे कि किसी ने तुम्हारे दिल में सुकुन भर दिया है, हिम्मत फिर से जवान हो गई है, अब तक जो आंखें दबदबा रही थीं, फिर उनमें हौसलों की चमक पैदा हो गई है …. नाहंजार समाज ने इरादों की जिस काएनात को तहस-नहस कर दिया था, फिर किसी गैबी शक्ति ने उसे नए सिरे से खड़ा कर दिया है, टूटे हुए दिल में ताज़गी भर आई हे..और कोई कहने वाला लुत्फी और नरमी के साथ सरगोशी कर रहा है कि “لاتخف ان اللہ معنا ” (Don’t be sad, Allah is with us.)

आदत डालो

आदत डालो

Good Habits

सुनने की आदत डालो क्योंकि
ताने मारने वालों की कमी नहीं हैं।

मुस्कराने की आदत डालो क्योंकि
रुलाने वालों की कमी नहीं हैं।

ऊपर उठने की आदत डालो
क्योंकि टांग खींचने वालों की कमी नहीं है।

प्रोत्साहित करने की आदत डालो क्योंकि
हतोत्साहित करने वालों की कमी नहीं है।

सच्चा व्यक्ति ना तो नास्तिक होता है ना ही आस्तिक होता है ।
सच्चा व्यक्ति हर समय वास्तविक होता है।

छोटी छोटी बातें दिल में रखने से
बड़े बड़े रिश्ते कमजोर हो जाते हैं।

कभी पीठ पीछे आपकी बात चले तो घबराना मत,
बात तो उन्हीं की होती है जिनमें कोई ” बात ” होती है।

निंदा उसी की होती है जो जिंदा हैँ
मरने के बाद तो सिर्फ “तारीफ” होती है।

Be Positive !

ये कतई इस्लाम नहीं है

ये कतई इस्लाम नहीं है

 

A body is seen on the ground after at least 30 people were killed in the southern French town of Nice when a truck ran into a crowd celebrating the Bastille Day national holiday

हर बार ये इल्ज़ाम रह गया,
हर काम में कोई काम रह गया,
नमाज़ी उठ उठ कर चले गये मस्ज़िदों से,

दहशतगरों के हाथ में इस्लाम रह गया.

खून किसी का भी गिरे यहां,
नस्ल-ए-आदम का खून है आखिर,
बच्चे सरहद पार के ही सही,
किसी की छाती का सुकून है आखिर.

 

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ख़ून के नापाक ये धब्बे,
ख़ुदा से कैसे छिपाओगे,
मासूमों के क़ब्र पर चढ़कर,
कौन से जन्नत जाओगे.

दिलेरी का हरगिज़ हरगिज़ ये काम नहीं है,
दहशत किसी मज़हब का पैगाम नहीं है,
तुम्हारी इबादत,
तुम्हारा खुदा,
तुम जानो, …..
हमें पक्का यकीन है ये कतई इस्लाम नहीं है…

— निदा फ़ाज़ली

अपने लिए भी जिये

अपने लिए भी जिये

पढोगे तो रो पड़ोगे …

अपने लिए भी जियें ..!

थोड़ा सा वक्त निकालो वरना,

ज़िंदगी के 20 वर्ष.. हवा की तरह उड़ जाते हैं…!

फिर शुरू होती है….. नौकरी की खोज….!
ये नहीं वो, दूर नहीं पास.

ऐसा करते 2-3 नौकरीयां छोड़ते पकड़ते….
अंत में एक तय होती है, और ज़िंदगी में
थोड़ी स्थिरता की शुरूआत होती है…. !

और हाथ में आता है… पहली तनख्वाह का चेक,
वह बैंक में जमा होता है और शुरू होता है….. अकाउंट में जमा
होने वाले कुछ शून्यों का अंतहीन खेल…..!
इस तरह 2-3 वर्ष निकल जाते हैँ….!
‘वो’ स्थिर होता है….
बैंक में कुछ और शून्य जमा हो जाते हैं….
इतने में अपनी उम्र के पच्चीस वर्ष हो जाते हैं…!

विवाह की चर्चा शुरू हो जाती है… एक
खुद की या माता पिता की पसंद
की लड़की से यथा समय विवाह होता है
… और ज़िंदगी की राम कहानी
शुरू हो जाती है….!

शादी के पहले 2-3 साल नर्म, गुलाबी,
रसीले और सपनीले गुज़रते हैं…..!
हाथों में हाथ डालकर बातें और रंग बिरंगे सपने……!
पर ये दिन जल्दी ही उड़ जाते हैं…और
इसी समय शायद बैंक में कुछ शून्य कम होते हैं……!
क्यों कि थोड़ी मौजमस्ती, घूमना फिरना,
खरीदारी होती है…..!

और फिर धीरे से बच्चे के आने की
आहट होती है और वर्ष भर में पालना झूलने लगता है……!

सारा ध्यान अब बच्चे पर केंद्रित हो जाता है….! उसका खाना
पीना, उठना बैठना, शु-शु, पाॅटी, उसके
खिलौने, कपड़े और उसका लाड़ दुलार….!
समय कैसे फटाफट निकल जाता है….. पता ही
नहीं चलता…..!

इन सब में कब इसका हाथ उसके हाथ से निकल गया, बातें करना,
घूमना फिरना कब बंद हो गया, दोनों को ही पता
नहीं चला……?
इसी तरह उसकी सुबह होती
गयी और बच्चा बड़ा होता गया…….
वो बच्चे में व्यस्त होती गई और ये अपने काम
में……!
घर की किस्त, गाड़ी की किस्त
और बच्चे की ज़िम्मेदारी,
उसकी शिक्षा और भविष्य की सुविधा और
साथ ही बैंक में शून्य बढ़ाने का टेंशन…..!
उसने पूरी तरह से अपने आपको काम में झोंक
दिया….!
बच्चे का स्कूल में एॅडमिशन हुआ और वह बड़ा होने लगा…..!
उसका पूरा समय बच्चे के साथ बीतने लगा….!

इतने में वो पैंतीस का हो गया…..!
खूद का घर, गाड़ी और बैंक में कई सारे शून्य…!
फिर भी कुछ कमी है…?
पर वो क्या है… समझ में नहीं आता……!
इस तरह उसकी चिड़-चिड़ बढ़ती
जाती है और ये भी उदासीन
रहने लगता है……!

दिन पर दिन बीतते गए, बच्चा बड़ा होता गया और
उसका खुद का एक संसार तैयार हो गया…! उसकी
दसवीं आई और चली
गयी……!
तब तक दोनों ही चालीस के हो गए….!
बैंक में शून्य बढ़ता ही जा

एक नितांत एकांत क्षण में उसे वो गुज़रे दिन याद आते हैं और वो
मौका देखकर उससे कहता है,
” अरे ज़रा यहां आओ,
पास बैठो….! ”
चलो फिर एक बार हाथों में हाथ ले कर बातें करें, कहीं
घूम के आएं……! उसने अजीब नज़रों से उसको देखा
और कहती है…….
” तुम्हें कभी भी कुछ भी
सूझता है… मुझे ढेर सा काम पड़ा है और तुम्हें बातों
की सूझ रही है..! ” कमर में पल्लू खोंस
कर वो निकल जाती है….!

और फिर आता है….. पैंतालीसवां साल,
आंखों पर चश्मा लग गया…….
बाल अपना काला रंग छोड़ने लगे……
दिमाग में कुछ उलझनें शुरू हो जाती हैं…..
बेटा अब काॅलेज में है….
बैंक में शून्य बढ़ रहे हैं… उसने अपना नाम कीर्तन
मंडली में डाल दिया और……..

बेटे का कालेज खत्म हो गया…..
अपने पैरों पर खड़ा हो गया……!
अब उसके पर फूट गये और वो एक दिन परदेस उड़ गया……..!!!

अब उसके बालों का काला रंग और कभी
कभी दिमाग भी साथ छोड़ने लगा……….!
उसे भी चश्मा लग गया..!
अब वो उसे उम्र दराज़ लगने लगी क्योंकि वो खुद
भी बूढ़ा हो रहा था…….!

पचपन के बाद साठ की ओर बढ़ना शुरू हो गया………!
बैंक में अब कितने शून्य हो गए…….
उसे कुछ खबर नहीं है… बाहर आने जाने के
कार्यक्रम अपने आप बंद होने लगे…….!

गोली-दवाइयों का दिन और समय निश्चित होने लगा……!
डाॅक्टरों की तारीखें भी तय होने लगीं…..!
बच्चे बड़े होंगे……..
तब हम सब एक साथ रहेंगे… ये सोचकर लिया गया घर
भी अब….. बोझ लगने लगा…….
बच्चे कब वापस आएंगे,
अब बस यही सोचते सोचते ज़िन्दगी के
बाकी दिन बीतने शुरू हुवे… अब आखिर में
यही बाकी रह गया था……!

और फिर वो एक दिन आता है….!
वो सोफे पर लेटा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था….!
वो शाम की दिया-बाती कर रही थी…..!
वो देख रही थी कि वो सोफे पर लेटा है….!
इतने में फोन की घंटी बजी….
उसने लपक के फोन उठाया….
उस तरफ बेटा था…!
बेटा अपनी शादी की
जानकारी देता है.. और बताता है…. कि अब वह
परदेस में ही रहेगा….!
उसने बेटे से.. बैंक के.. शून्य के बारे में… क्या करना यह पूछा….?
अब चूंकि विदेश के शून्य की तुलना में…. उसके शून्य
बेटे के लिये शून्य हैं इसलिए उसने पिता को सलाह दी……!”
एक काम करिये, इन पैसों का ट्रस्ट बनाकर वृद्धाश्रम को दे दीजिए… और खुद भी वहीं रहिये…..!”
कुछ औपचारिक बातें करके बेटे ने फोन रख दिया……!

वो पुनः सोफे पर आ कर बैठ गया…. उसकी
भी दिया बाती खत्म होने आई थी…..
उसने उसे आवाज़ दी,
” चलो आज फिर हाथों में हाथ ले के बातें करें….!”
वो तुरंत बोली,
” बस अभी आई….!”
उसे विश्वास नहीं हुआ…
चेहरा खुशी से चमक उठा……..
आंखें भर आईं……
उसकी आंखों से गिरने लगे और गाल भीग गए…
अचानक आंखों की चमक
फीकी हो गई और वो निस्तेज हो गया……!!
हमेशा के लिए…..!!!!
उसने शेष पूजा की… और उसके पास आ कर बैठ गई…. कहा….
“बोलो क्या बोल रहे थे.?”
पर उसने कुछ नहीं कहा.!
उसने उसके शरीर को छू कर देखा, शरीर
बिल्कुल ठंडा पड़ गया था…..और वो एकटक उसे देख रहा था………!!!!

क्षण भर को वो शून्य हो गई…….
“क्या करूं” उसे समझ में नहीं आया…….!!
लेकिन एक-दो मिनट में ही वो चैतन्य हो गई…
धीरे से उठी और पूजाघर में गई…..!
एक अगरबत्ती जलाई और ईश्वर को प्रणाम किया
और फिर से सोफे पे आकर बैठ गई…..!

उसका ठंडा हाथ हाथों में लिया और बोली,
” चलो कहां घूमने जाना है और क्या बातें करनी हैं तम्हे…….!!” बोलो…….!!
ऐसा कहते हुए उसकी आँखें भर आईं…..!!
वो एकटक उसे देखती रही…….
आंखों से अश्रुधारा बह निकली……!
उसका सिर उसके कंधों पर गिर गया…..!!
ठंडी हवा का धीमा झोंका अभी
भी चल रहा था….!!

क्या यही जिंदगी है…….??
नहीं……..!!!

संसाधनों का अधिक संचय न करें……
ज्यादा चिंता न करें…..
सब अपना अपना नसीब ले कर आते हैं….!
अपने लिए भी जियो…
वक्त निकालो…..!

सुव्यवस्थित जीवन की कामना……..!!
जीवन आपका है…. जीना आपने ही है…!!
अब इसे कैसे जीना है…. यह आज और
अभी सोचिये…. क्यों की कल
कभी नहीं आता…!!!!