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Category: हिंदी

नजर नहीं है नजारों की बात करते हैं

नजर नहीं है नजारों की बात करते हैं

नज़र नहीं है नज़ारों की बात करते हैं
ज़मीं पे चाँद-सितारों की बात करते हैं

वो हाथ जोड़कर बस्ती को लूटने वाले
भरी सभा में सुधारों की बात करते हैं

बड़ा हसीन है उनकी जबान का जादू
लगा के आग बहारों की बात करते हैं

मिली कमान तो अटकी नज़र ख़जाने पर
नदी सुखा के किनारों की बात करते हैं

वही गरीब बनाते हैं आम लोगों को
वही नसीब के मारों की बात करते हैं

वतन का क्या है, इसे टूटने-बिखरने दो
वो बुतकदों की, मज़ारों की बात करते हैं

-वीरेन्द्र वत्स

तुम्हारी फाइलों में

तुम्हारी फाइलों में

अदम गोंडवी

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं, ये दावा किताबी है

उधर जम्हूरियत का ढोल पीते जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है ,नवाबी है

लगी है होड़ – सी देखो अमीरी और गरीबी में
ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है

तुम्हारी मेज़ चांदी की, तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है

– अदम गोंडवी

मै इस मुल्क का क्या लगता हूं?

मै इस मुल्क का क्या लगता हूं?

मै इस मुल्क का क्या लगता हूं?
ये जानने को मै कौन सी किताब पढू इतना बतादो,
मै अभी भूखा हूं,
सूटकेस पे सोते सोते घर जाते हुए,
मेरे सपने में मै गा रहा था,
वन्दे मातरम गुनगुना रहा था,
स्कूल के आंगन से अंदर जा रहा था,
पर नहीं
मै ईस्कुल नहीं जाना चाहता,
मै नहीं जानना चाहता ये भूमि का इतिहास,
मुझे नहीं लिखना “सोने की चिड़ियां” पे कोई भी निबंध,
मुझे राष्ट्र के मुकुट पे कविता लिखना कठिन लग रहा है,
और ना ही वो सब वेग प्रवेग और गति के समीकरणों से मुझे पन्ने भरने है,
मुझे फर्क नहीं पड़ता कौन सी भाषा कितनी पुरानी है या कौन सी भाषा सब भाषा की मां है,
वो हर भाषा जों मुझे “मै इस मुल्क का क्या लगता हूं?” ना बता पाए, उस हर भाषा से मुझे अलगाव है,
मै नहीं सीखना चाहता ज़्यादा कुछ,
मुझे इस्कुल भेज दिया,
मुझे सीखा दिया की ये देश मेरी मां लगता है,
वो मै सीख चुका हूं,
अब मुझे ये बताओ
“मै इस मुल्क का क्या लगता हूं?”
-zarana

Zindagi Mein

Zindagi Mein

जिंदगी में किसको क्या मिले? उसका कोई हिसाब नहीं,

तेरे पास रूह नहीं, मेरे पास लिबास नहीं।

Zindagi Mein Kisko Kya Mile? Uska Koi Hisaab Nahi,
Tere Paas Rooh Nahi, Mere Paas Libaas Nahi.

कुछ अच्छी बातें

कुछ अच्छी बातें

ईश्वर का दिया कभी अल्प नहीं होता;
जो टूट जाये वो संकल्प नहीं होता;
हार को लक्ष्य से दूर ही रखना;
क्योंकि जीत का कोई विकल्प नहीं होता।

जिंदगी में दो चीज़ें हमेशा टूटने के लिए ही होती हैं :
“सांस और साथ”
सांस टूटने से तो इंसान 1 ही बार मरता है;
पर किसी का साथ टूटने से इंसान पल-पल मरता है।

जीवन का सबसे बड़ा अपराध – किसी की आँख में आंसू आपकी वजह से होना।
और
जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि – किसी की आँख में आंसू आपके लिए होना।

जिंदगी जीना आसान नहीं होता;
बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता;
जब तक न पड़े हथोड़े की चोट;
पत्थर भी भगवान नहीं होता।

जरुरत के मुताबिक जिंदगी जिओ – ख्वाहिशों के मुताबिक नहीं।
क्योंकि जरुरत तो फकीरों की भी पूरी हो जाती है;
और ख्वाहिशें बादशाहों की भी अधूरी रह जाती है।

मनुष्य सुबह से शाम तक काम करके उतना नहीं थकता;
जितना क्रोध और चिंता से एक क्षण में थक जाता है।

दुनिया में कोई भी चीज़़े आपके लिए नहीं बनी है।
जैसे:
दरिया – खुद अपना पानी नहीं पीता।
पेड़ – खुद अपना फल नहीं खाते।
सूरज – अपने लिए हररात नहीं देता।
फूल – अपनी खुशबु अपने लिए नहीं बिखेरते।
मालूम है क्यों?
क्योंकि दूसरों के लिए ही जीना ही असली जिंदगी है।

मांगो तो अपने रब से मांगो;
जो दे तो रहमत और न दे तो किस्मत;
लेकिन दुनिया से हरगिज़ मत मांगना।

सब की यही कहानी है

सब की यही कहानी है

भीतर-भीतर आग भरी है
बाहर-बाहर पानी है
तेरी-मेरी, मेरी-तेरी
सब की यही कहानी है।

ये हलचल, ये खेल-तमाशे
सब रोटी की माया है
पेट भरा है तो फिर प्यारे
ऋतु हर एक सुहानी है।

ज्ञान-कला का मान नहीं कुछ,
धन का बस सम्मान यहाँ
धन है तेरे पास तो
तेरी मैली चादर धानी है।

ये हिन्दू है वो मुस्लिम है,
ये सिख वो ईसाई है
सब के सब हैं ये-वो
लेकिन कोई न हिन्दुस्तानी है ।

इसके कारण गले कटे
और लोगों के ईमान बिके
इस छोटी-सी कुर्सी की तो
अदभुत बड़ी कहानी है ।

हंस जहाँ पर भूखों मरते,
बगुले करते राज जहाँ
वो ही देश है भारत
उसका जग में कोई न सानी है ।

सौ-सौ बार यहाँ जनमा
मैं सौ-सौ बार मरा हूँ मैं
रंग नया है, रूप नया है
सूरत मगर पुरानी है।

– कवि “नीरज”

कभी

कभी

दूर तक ख़ामोशियों के
संग बहा जाये कभी।
बैठ कर तन्हाई में खुद
को सुना जाए कभी।।

देर तक सोचते हुए
अक्सर मुझे आया ख़याल।
आईनों के सामने खुद पर
भी हँसा जाए कभी।।

जिस्म के पिंजरे का पंछी
सोचता रहता है ये।
आसमाँ में पंख फैला कर
भी उड़ा जाए कभी।।

उम्र भर के इस सफ़र में
बार बार चाहा तो था।
अनकहा जो रह गया
वो भी कहा जाए कभी।।

खुद की खुशबू में सिमट
कर उम्र सारी काट ली।
कुछ दिनों तो दूर खुद
से भी रहा जाए कभी ।

जिवन ही क्रिकेट है

जिवन ही क्रिकेट है

सृष्टि के महान स्टेडियम में
धरती की विराट पिच पर
समय बोलिंग कर रहा है
ईश्वर के ईस आयोजन में
अम्पायर धर्मराज है,
प्राण हमारा विकेट है
विकेटकीपर यमराज है
शरीर बल्लेबाज है
जिवन ही क्रिकेट है,जिवन ही क्रिकेट है
जिवन ही क्रिकेट है, Life is cricket….

इस डे-नाईट मेच में
रचनात्मक जलवे दिखाने है,
सांसो की सिमीत ओवर में
सर्जन के रन बनाने है
गील्लीयां बिखर जाने का मतलब सांस टुट जाना
LBW यानी हार्ट अटेक
दुर्धटना में मरना रन आऊट माना है
आत्मघात का मतलब हिट विकेट और
हत्या का अर्थ स्टम्प आऊट माना है
अपना अपना रनरेट है,
जिवन ही क्रिकेट है, जिवन ही क्रिकेट है
जिवन ही क्रिकेट है, Life is cricket….

क्युंकी वो एक औरत है

क्युंकी वो एक औरत है

उसे माँ बनकर हम सबों को सम्भालना है,
उसे बहन बनकर हमारे लिए लडना है,
उसे दादी बनकर हमे कहानियाँ सुनाना है,
उसे बीवी बनकर हम अधुरो को पूरा करना है,
क्युंकी, वो एक औरत है;

अगर वो मन्दिर में हो तो उसे पूजते है,
तस्वीर हो जाए तब जाके चूमते है,
उसके नाम का एक दिन मानकर झूमते है,
क्युंकी, वो एक औरत है..

उसे खुल के जीने का अधिकार है,
उसे जीने के लिए जन्म लेने का हक्क है,
अरे उसे जन्म लेकर जन्म देना है,
उसे इस सृष्टि के चक्र को चलाना है;
क्युंकी, वो एक औरत है;

अपनी मूँछों पर ताव देके, सीने को चौडा करके,
आवाज़ में दम रखके, हम मर्द बने घुमते है,
सिर्फ़ इसी लिए
क्युंकी,
वो एक औरत है..

– सेजपाल श्री’राम’, 0288 (8.3.16)

जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता

जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता

जिधर जाते हैं सब जाना उधर अच्छा नहीं लगता

मुझे पामाल रस्तों का सफ़र अच्छा नहीं लगता

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना

बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता

मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है

किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता

बुलंदी पर उन्हें मिट्टी की ख़ुश्बू तक नहीं आती

ये वो शाख़ें हैं जिन को अब शजर अच्छा नहीं लगता

ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो

कि सब बेघर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता

  • जावेद अख्तर

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