सब की यही कहानी है

सब की यही कहानी है

भीतर-भीतर आग भरी है
बाहर-बाहर पानी है
तेरी-मेरी, मेरी-तेरी
सब की यही कहानी है।

ये हलचल, ये खेल-तमाशे
सब रोटी की माया है
पेट भरा है तो फिर प्यारे
ऋतु हर एक सुहानी है।

ज्ञान-कला का मान नहीं कुछ,
धन का बस सम्मान यहाँ
धन है तेरे पास तो
तेरी मैली चादर धानी है।

ये हिन्दू है वो मुस्लिम है,
ये सिख वो ईसाई है
सब के सब हैं ये-वो
लेकिन कोई न हिन्दुस्तानी है ।

इसके कारण गले कटे
और लोगों के ईमान बिके
इस छोटी-सी कुर्सी की तो
अदभुत बड़ी कहानी है ।

हंस जहाँ पर भूखों मरते,
बगुले करते राज जहाँ
वो ही देश है भारत
उसका जग में कोई न सानी है ।

सौ-सौ बार यहाँ जनमा
मैं सौ-सौ बार मरा हूँ मैं
रंग नया है, रूप नया है
सूरत मगर पुरानी है।

– कवि “नीरज”

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