क्युंकी वो एक औरत है

क्युंकी वो एक औरत है

उसे माँ बनकर हम सबों को सम्भालना है,
उसे बहन बनकर हमारे लिए लडना है,
उसे दादी बनकर हमे कहानियाँ सुनाना है,
उसे बीवी बनकर हम अधुरो को पूरा करना है,
क्युंकी, वो एक औरत है;

अगर वो मन्दिर में हो तो उसे पूजते है,
तस्वीर हो जाए तब जाके चूमते है,
उसके नाम का एक दिन मानकर झूमते है,
क्युंकी, वो एक औरत है..

उसे खुल के जीने का अधिकार है,
उसे जीने के लिए जन्म लेने का हक्क है,
अरे उसे जन्म लेकर जन्म देना है,
उसे इस सृष्टि के चक्र को चलाना है;
क्युंकी, वो एक औरत है;

अपनी मूँछों पर ताव देके, सीने को चौडा करके,
आवाज़ में दम रखके, हम मर्द बने घुमते है,
सिर्फ़ इसी लिए
क्युंकी,
वो एक औरत है..

– सेजपाल श्री’राम’, 0288 (8.3.16)

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