कभी

कभी

दूर तक ख़ामोशियों के
संग बहा जाये कभी।
बैठ कर तन्हाई में खुद
को सुना जाए कभी।।

देर तक सोचते हुए
अक्सर मुझे आया ख़याल।
आईनों के सामने खुद पर
भी हँसा जाए कभी।।

जिस्म के पिंजरे का पंछी
सोचता रहता है ये।
आसमाँ में पंख फैला कर
भी उड़ा जाए कभी।।

उम्र भर के इस सफ़र में
बार बार चाहा तो था।
अनकहा जो रह गया
वो भी कहा जाए कभी।।

खुद की खुशबू में सिमट
कर उम्र सारी काट ली।
कुछ दिनों तो दूर खुद
से भी रहा जाए कभी ।

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